Aparna_kutubnagar
Wednesday, July 19, 2017
Tuesday, July 11, 2017
एहसास
उदास रात के पैरों में तेरी रुनझुन थी,
अक्स उभरा कि सीपियों ने उबासी ली .
हांथ रखा तु छू गये रिश्ते ऐसे ,
नदी जैसे सदियों से इक समन्दर थी.
अक्स उभरा कि सीपियों ने उबासी ली .
हांथ रखा तु छू गये रिश्ते ऐसे ,
नदी जैसे सदियों से इक समन्दर थी.
Sunday, January 25, 2015
Aparna_kutubnagar
एक तिनका धूप के बावजूद
बची है रोशनी की थोड़ी सी उम्मीद
कि बंजर घोषित धरती पर भी
उग आता है कभी कभी
बबूल सा कोई पौधा
और आने जाने वाले पथिकों के लिये
बन जाता है थोड़ी देर सुस्ता लेने का छोटा सा आसरा
बची है रोशनी की थोड़ी सी उम्मीद
कि बंजर घोषित धरती पर भी
उग आता है कभी कभी
बबूल सा कोई पौधा
और आने जाने वाले पथिकों के लिये
बन जाता है थोड़ी देर सुस्ता लेने का छोटा सा आसरा
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