Monday, August 31, 2009

भूख और रोटी

सब कहते है रोटियां आटे से बनती है
मै कहती हू रोटियां आटे से नही इच्छा , सपने और मेहनत से बनती है
और भूख ही जन्म देती है आटे को , रोटी को और आग को .
भूख ही है वह इच्छा
जो बना देती है घर , रिश्ते , दोस्त , दुश्मन और बाजार
जंहा , रोटी और भूख दोनी ही बिकती है
बस कीमत अलग अलग है और रोटी के आकर भी
रोटी कभी जिन्दा होती है , कभी मुर्दा
कभी गीली कभी सुखी
कभी जवान कभी बूढी
बस बिकती है
और अपने अपने खरीददारों में अपनी किस्मत ढूढती है
दोस्तों , कभी भूख लगे तो सिर्फ रोटी को मत खोजना
खोजना उस बाजार को जंहा हर रात किस्मत बदलती है
हो सकता है ,
तुम्हारी भूख किसी रोटी कि किस्मत बदल दे .

4 comments:

Mithilesh dubey said...

सच्चाई को बयां करती सुन्दर रचना........

विनोद कुमार पांडेय said...

बढ़िया!!!
सुंदर भाव छिपा है.
बधाई!!!

फ़िरदौस ख़ान said...

बहुत भावपूर्ण रचना है...

अंतस said...

कभी सोचा न था.......इस तरह भी होता है, its realy nice.........