आज गाँव में आग लग गई
लोग दौड़ रहे है बाल्टियाँ , घड़े , मटके , भगौने लेकर
जिसको जो मिला वही ले चला
आग बुझानी है किसी भी हाल में
नन्हकू की टुटही मडैया ,
रामदीन की गैया ,
भरोसे की चौपाल ,
अम्मा का बरोठा ,
सब धू -धू जल रहा है .....................
सरकारी नल पर लगी है लाइन
एक बार में एक ही बाल्टी भरेगी
आग तब तक और बढ़ेगी
क्या करें लोग ????????????????????????????????
आराम के लोभ में भूल गए पुरानी थाती
सूख गए सारे कुंए , तालाब
जंहा एक एक बार में दस दस बाल्टियाँ भरती थीं
बुझा लिए जाते थे गाँव के गाँव
अब तो बस वही सरकारी नल हैं
जो आग तो क्या प्यास भी नहीं बुझा पाते .
जैसे जलते रहते हैं कंठ , जलते रहेंगे गाँव
हम तमाशबीन बन बस देखते रह जायेंगे
हाथों में ख़ाली बर्तन लिए लाइन लगायेंगे..
3 comments:
क्या विडम्बना दर्शाया है
बहुत खूब
महत्वपूर्ण शब्दांकन । अति प्रशंसनीय । आप लोक कल्याण के लिए सक्रिय हैं . बधाई ।
Pehli baat, sandesh achook hai!
Doosri baat, rachna ke star par bhi achhi hai aapkee krati.....
Sadhuwaad!
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