Tuesday, January 4, 2011

नयी दुनिया का जन्म

आज सूरज बड़ा उदास था. कल ग्रहण से संघर्स करता रहा. कुहासा चारों और छाया हुआ था. न जाने किस बेचैनी ने समय पर अपनी चादर तान राखी थी
. कहते है कभी कभी प्रकृति भी उदास और निराश हो जाती है. क्या करे जिसे वो बिना किसी स्वार्थ के सब कुछ देती रहती है , वही उसको  नष्ट  करने पर उतारू है. पानी में गन्दा जहर घोल रहे हैं, हवा को धुंए और विषैली गैसों से  विषाक्त कर रहे है. पेड़ों को काट रके है , नदियों को बांध रहे है पहाड़ों को तोड़ रहे हैं और रेत को बेच रहे हैं.
लगता है मनुष्य ने अपने आप को ख़त्म करने की कसम खा ली है . न प्रकृति  रहेगी ,न जीवन रहेगा और सब कुछ काल के गाल में समा जायेगा.  
तब क्या फिर से मनु का जन्म होगा. आदम और हौवा फिर से नई सृष्टी  रचेंगे .
काश उस नई दुनिया में ऐसा मनुष्य न हो जो आपसी बैर फैलाये , अमीर गरीब की खाइयाँ बनाये , समाज को उच्च  और निम्न की श्रेड़ियों  में बाँट दे , इन्सान से ज्यादा धर्म और जाति को महत्त्व दे  तथा  हमेशा सुख मेरे और दुःख तेरे की मंशा लोगों के दिलों में भरता रहे.
हे इश्वर अगर तुम्हारे हाथ में कुछ भी है तो ऐसा मनुष्य कभी न बनने देना.

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