पिछले दिनों मै खोई रही . जाने कंहा . कुछ बोलने का मन नहीं था न ही सुनने , पढ़ने या देखने का. माफी चाहती हु आप सब से.
इस बीच एक बहुत बड़ी घटना हुई. राज्य सभा में महिला बिल का पास होना. इस बारे में मैंने एक आदिवासी गाँव में महिलाओं के एक ग्रुप में बात कि . सबने बहुत ख़ुशी ख़ुशी बात सुनी .
एक ने कहा " क्या अब सब अन्नाज , सब्जी , डालें सस्ती हो जाएँगी ?
दूसरी " अरे नहीं नहीं , अब गाँव में हमें पानी और बिजली मिलने लगेगा . अब पिने का पानी साफ होकर मिलेगा . पानी भरने और नहाने तालाब नहीं जाना होगा. :" सब बहुत खुश थी . अरे अब सब सुविधाएं हम औरतों को मिलने लगेंगी.
तभी उनमे एक बोली " ज्यादा खुश होने कि जरुरत नहीं है . कुछ नहीं बदलने wala . --
ये कुछ भी होता रहे हमें न तो मौका मिलेगा न ही हौसला अफजाई . सदन में वही बैठेंगी जिनके पति पहले से वंहा बैठे है. या वे जाएँगी जो बड़े लोगो के यंहा मजूरी करते है. बड़े लोग उनके औरत होने का फायदा उठाएंगे और वे कठपुतली बन दूसरों के इशारों पर नाचती रहेंगी .
हमें इतने सालों से एस टी के नाम पर रिसर्वेसन दिया गया है . फिर भी हमारे घरों में आज भी पत्ता , फूस , लकड़ी और दो चार बर्तनों के साथ बहुत सारी बीमारियाँ , कर्जे का बोझ , बच्चों कि भूख , गन्दा पानी ओर नंगे बदन के सिवा कुछ नहीं होता . नेता लोग राजधानी में हमारी भीड़ लगाते हैं , हमारे नाम पर करोड़ों कमाते हैं और हम अपनी भूख और गरीबी के कारन उनके हाथ का निवाला बन जाता है. हमारे पेट पिचके ही रहते हैं और उनके फूलते जाते हैं.
और अब इस महिला रिसर्वेसन के नाम पर हम औरतों के शरीरों के साथ भी khilead होगा. हम शारीर से उपस्थित होंगे उनके साथ हमारे निर्णय उनके बंधक होंगे.
तब क्या कुछ बदल पायेगा हमारे लिए?????????????????????