Friday, December 3, 2010

सिनाख्त

झाड़ी में पड़ी छिन्न- भिन्न लाश
की पहचान करना मुश्किल था.
कौन था , किस धर्म का था
किस गाँव या किस देश का था ;
हाँ उसकी जेब से मिले सूखे सुर्ख गुलाब से सिनाख्त हो सकी
कि वह एक जिंदादिल इन्सान था
तमाम बंदिशों और परम्पराओं के बावजूद...............
वह प्रेम में था ...................................................

गुनाह किसका

वे जो कल भूखे थे आज चोर हुए
कल कातिल  होंगे
और परसों.....................................
उन्हें फांसी की सजा होगी
लेकिन गुनाह किसका है?
आदमी का, भूख का या उस काले बाजार का;
जंहा अनाज ठुंसा है  , सड़ रहा है
 देश के नेता राजनीति कर रहे हैं
और न्यायालय आँखों पर पट्टी बांध
बेगुनाह को फांसी की सजा सुनाएगा.

Sunday, October 10, 2010

आम से खास हुए आदमी

कल कुछ आदमी आम से खास हुए
मंत्री बने , लाल बत्ती मिली
ढोल नगाड़े बजे , काफिले  सड़कों पे दौड़े
गाँव में पंडाल सजे
मुर्गा भात की दावत सजी
पुराने नीम के पेड़ ने मुस्कुराकर पूछा
बाबा मेरी गोद में नहीं आओगे
कुछ ने सुना ही नहीं
बाहें फैले नीम सूनी  बाहें लिए खड़ा रहा
आँगन का सेमल बरसाता रहा फूल
बेटा गाँव में आया है बड़ा आदमी बनकर
कुछ हमारा भला होगा कुछ गाँव का
दुसरे दिन फरमान आया
आँगन के सेमल , द्वार के नीम को काट दो
अब  मंत्री जी को पेड़ की नहीं एसी की जरूरत है 
 जब नया पद , नई कोठी
तब....... पुराने नीम और सेमल की क्या जरुरत .

Wednesday, June 30, 2010

स्वाभिमान या रोटी

वो कहते हैं न की झुककर तो कविता भी नहीं उठानी चाहिए.  लेकिन यह देश ऐसा है दोस्तों की हर इमानदार , मेहनतकश को भ्रष्ट , बेईमान साहब के  सामने झुकना पड़ता है भले ही वह कितना भी   सही क्यों न हो .

पाठकों आप सब से यह सवाल है -  स्वाभिमान जरुरी है या रोटी.
कृपया जवाब जरुर दीजिये .

Tuesday, May 4, 2010

आग पानी और कुंए

आज गाँव में आग लग गई
लोग दौड़ रहे है बाल्टियाँ , घड़े , मटके , भगौने लेकर
जिसको जो मिला वही ले चला
आग बुझानी है किसी भी हाल में
नन्हकू की  टुटही मडैया ,
रामदीन की गैया , 
भरोसे की चौपाल ,
अम्मा का बरोठा ,
सब धू -धू जल रहा है .....................
सरकारी नल पर लगी है लाइन
 एक बार में एक ही बाल्टी भरेगी
आग तब तक और बढ़ेगी
क्या करें   लोग ????????????????????????????????
आराम के लोभ में भूल गए पुरानी थाती
सूख गए सारे कुंए ,  तालाब
जंहा एक एक बार में दस दस बाल्टियाँ भरती थीं
बुझा लिए जाते थे  गाँव के गाँव
अब तो बस वही सरकारी नल हैं 
जो आग तो क्या प्यास भी नहीं बुझा पाते .
जैसे जलते रहते हैं कंठ , जलते रहेंगे गाँव 
हम तमाशबीन बन बस देखते रह जायेंगे
हाथों में ख़ाली बर्तन  लिए लाइन लगायेंगे..

Monday, March 15, 2010

Mahila arakshan aur adiwasi mahilaon ke vichar

पिछले दिनों मै खोई रही . जाने कंहा . कुछ बोलने का मन नहीं था न ही सुनने , पढ़ने या देखने का. माफी चाहती हु आप सब से.
इस बीच एक बहुत बड़ी घटना हुई. राज्य सभा में महिला बिल का पास होना.  इस बारे में मैंने एक आदिवासी गाँव में महिलाओं के एक ग्रुप में बात कि .  सबने बहुत ख़ुशी ख़ुशी बात सुनी .
 एक ने कहा " क्या अब सब   अन्नाज , सब्जी , डालें सस्ती हो जाएँगी ?
 दूसरी " अरे नहीं नहीं , अब गाँव में हमें पानी और बिजली मिलने लगेगा . अब पिने का पानी साफ होकर मिलेगा . पानी भरने और नहाने तालाब नहीं जाना  होगा. :" सब बहुत खुश थी . अरे अब सब सुविधाएं हम औरतों को मिलने लगेंगी.
 तभी उनमे एक बोली " ज्यादा खुश होने कि जरुरत नहीं है . कुछ नहीं बदलने wala . --
ये कुछ भी होता रहे हमें न तो मौका मिलेगा न ही हौसला अफजाई . सदन में वही बैठेंगी जिनके पति पहले से वंहा बैठे है. या वे जाएँगी जो बड़े लोगो के यंहा मजूरी करते है.  बड़े लोग उनके औरत होने का फायदा उठाएंगे और वे कठपुतली बन दूसरों के इशारों पर नाचती रहेंगी .
हमें इतने सालों  से एस टी के नाम पर रिसर्वेसन दिया गया है . फिर भी हमारे घरों में आज भी पत्ता , फूस , लकड़ी और दो चार बर्तनों के साथ बहुत सारी बीमारियाँ   , कर्जे का बोझ , बच्चों कि भूख ,  गन्दा पानी ओर नंगे बदन के सिवा कुछ नहीं होता .  नेता लोग राजधानी में हमारी भीड़ लगाते हैं , हमारे नाम पर करोड़ों कमाते हैं और हम  अपनी भूख और गरीबी के कारन उनके हाथ का निवाला बन जाता है. हमारे पेट पिचके ही रहते हैं और उनके फूलते जाते हैं.
और अब इस महिला रिसर्वेसन    के नाम पर हम औरतों के शरीरों के साथ भी khilead होगा. हम शारीर से उपस्थित होंगे उनके साथ  हमारे निर्णय उनके बंधक होंगे.
तब क्या कुछ बदल पायेगा हमारे लिए?????????????????????

Tuesday, February 2, 2010

हिंदुस्तान हिन्दी में क्षमा शर्मा के लेख पर

प्रिय क्षमा दी
आज हिंदुस्तान पेपर में आपका लेख प्रदुषण और जेनेवा कि प्रभातफेरी पढ़ा . सच में लेख दिल को छू gaya . आपने जिन बिन्दुओं कि और पाठकों का ध्यान आकर्षित किया है वह वास्तव में बहुत बड़ी समस्याएं है. हम विकास के नाम पर जिस अंधे कुएं में छलांग लगा रहे है वह हमें विनाश के अलावा कंही और नहीं ले जाता. प्रदुषण के कारन अस्थमा जैसी गंभीर बिमारियों से जूझते हुए बच्चे इस देश का भविष्य है. जितनी बड़ी गाड़ी उतना बड़ा आदमी जैसे जुमले हमारे यंहा आदमी कि पहचान बताते है . अब आदमी का बड़प्पन उसके काम , उसके विचारों से नहीं बल्कि उसके द्वारा फैलाये जा रहे प्रदुषण से आंकी जाती है .
बड़ी गाड़ी - बड़ा आदमी
ढेर साडी फक्ट्रियां - बड़ा आदमी
लाल बत्ती के पीछे दौड़ती सैकड़ों गाड़ियाँ - बहुत बड़ा आदमी

आब बताइए इस देश का आम आदमी कैसे नहीं बड़ा बनने के बारे में सोचेगा . और अगर वह सोचता है तो क्या बुरा करता है . आखिर बड़े होने का हक सबको है .

प्रदुषण , ग्लोबल वार्मिंग जैसे विषय बड़े आदमियों के दिल बहलाव का हिस्सा है . इसी बहाने कोपेन हेगेन जैसे बड़े सम्मलेन होते है , बड़े काम होते है पर देश और यह दुनिया एक इंच भी आगे नहीं बढती.

Monday, January 11, 2010

नेताओ का पर्सनालिटी टेस्ट

क्या बताएं , कल गालियों की बात की , और हमारे एक माननीय नेता जी ने दूसरे माननीय नेता जी को सरे आम गाली दी और अपनी फजीहत कराइ। तो जनाब हमारे नेताओ को कौन समझाए कि उनका vयवहार जरुर शोभनीय होना चाहिए ।
हमारे नेता सदन में गाली देते है , कुर्सियां फेकते है , सिर फोड़ते है , हाथ पाई करते है। और तो और राष्ट्र भाषा के प्रयोग पर गाल लाल कर देते है । ये वही लोग हैं जिन्हें हम अपना प्रतिनिधि बनाकर सदन में भेजते हैं।
सवाल यह है कि गलती किसकी है ? हमारी या उन नेताओं कि जो कभी कभी अपना असली चेहरा दिखा देते है ।
अब क्या हम ये गलती दोहराते रहेंगे , या आँख बंद करके बैठे रहेंगे ।
क्या नेताओं को चुनाव नोमिनेसन के पहले पर्सोनालिटी टेस्ट होना चाहिए ?????????

आप क्या सोचते है , जरुर बताइए ...

Sunday, January 10, 2010

रूह का रिश्ता

किसी की लाइने है " जिस्म से रूह का रिश्ता भी अजब होता है , उम्र भर साथ रहे , फिर भी तार्रुफ न हुआ"।

कुछ ऐसा ही होता है उन पुरुषों का जो कभी किचन के भीतर nahi जाते। कभी एक कप चाय बनानी पड़े तो हाथ पाँव फूळ जाते हैं। लेकिन उन पुरुषो को धन्यवाद् जिन्होंने नए साल में जिस्म से रूह का तार्रुफ karane का संकल्प लिया हो। और जिन्होंने संकल्प नही लिया है वे ले सकते है। अभी देर नही हुई..........

नए साल पर शुभकामनायें देना तो पुरानी बात है , बात नई यह है की कुछ लोगों ने नए साल पर गालियाँ भी दी। त्यौहार था गणेश चतुर्थी का । कुछ समाजों में मान्यता है , की यदि किसी का भला करना है , तो उसे बुरी गालियाँ दो। जैसे हे भगवान वह बीमार हो जाए , तो उसकी उम्र लम्बी होगी ।इश्वर करे हमारे देश में ऐसी मान्यताएं बनी रहे , ताकि कुछ नया होता रहे , और कुछ नया होने की संभावनाएं बनी रहे.