नवीन जोशी के ब्लॉग पर कमेन्ट -
कुछ कहने के लिए हमारे पास शब्द चाहिए , शब्दों के लिए विचार चाहिए , विचारों के लिए चिंतन चाहिए और चिंतन के लिए वक्त चाहिए. इस आपाधापी भरे समय में चिंतन के लिए समय निकालने के लिए कौन तैयार होगा. इस उपभोक्तावादी समाज में लोग सिर्फ पैसे के बारे में सोचना चाहते है.एक कथा कहती हूँ. एक किसान जेठ की भरी दोपहरी में खेत की मेड पर एक पेड़ की chhaya में आराम से सो रहा था. उसी समय एक समाज सेवक ( अरे भाई संस्था वाले लोग) किसान के पहुंचे और उसे जगाया. किसान बोला सरे भाई क्यों उठा दिए? अभी तो आँख लगी थी.समाज सेवक जी बोले , अरे तुम जैसे लोगो के कारन ही हमारे देश का बुरा हाल है . तू सो सो कर सारा समय barbad कर रहे हो. अरे कुछ कम -धाम करो. किसान बोला" भैया काम करके क्या होगा?" समाज सेवक " काम करोगे तो पैसा आयेगा ".किसान - पैसा से क्या होगा?समाज सेवक- पैसा आयेगा तो खुशहाली आयेगी. चिंता फिकर कम होगी , घर में चैन होगा तो आराम की नीद आयेगी.किसान - भैया , खेत में हाड़ तोड़ मेहनत करके आराम की नीद ही तो सो रहा था , तब आपने आकर जगा दिया.समाज सेवक की ड्यूटी पूरी हो चुकी थी , जिन्होंने पुरे देश को जागृत करने का प्रोजेक्ट ले रखा था.
तो साहब किस्से तो बहुत है , हा हमें किसे जगाने और किसे सुनाने की jarurat है यह कौन तय करेगा??????????????????