Monday, December 21, 2009

नवीन जोशी के ब्लॉग पर comment

नवीन जोशी के ब्लॉग पर कमेन्ट -

कुछ कहने के लिए हमारे पास शब्द चाहिए , शब्दों के लिए विचार चाहिए , विचारों के लिए चिंतन चाहिए और चिंतन के लिए वक्त चाहिए. इस आपाधापी भरे समय में चिंतन के लिए समय निकालने के लिए कौन तैयार होगा. इस उपभोक्तावादी समाज में लोग सिर्फ पैसे के बारे में सोचना चाहते है.एक कथा कहती हूँ. एक किसान जेठ की भरी दोपहरी में खेत की मेड पर एक पेड़ की chhaya में आराम से सो रहा था. उसी समय एक समाज सेवक ( अरे भाई संस्था वाले लोग) किसान के पहुंचे और उसे जगाया. किसान बोला सरे भाई क्यों उठा दिए? अभी तो आँख लगी थी.समाज सेवक जी बोले , अरे तुम जैसे लोगो के कारन ही हमारे देश का बुरा हाल है . तू सो सो कर सारा समय barbad कर रहे हो. अरे कुछ कम -धाम करो. किसान बोला" भैया काम करके क्या होगा?" समाज सेवक " काम करोगे तो पैसा आयेगा ".किसान - पैसा से क्या होगा?समाज सेवक- पैसा आयेगा तो खुशहाली आयेगी. चिंता फिकर कम होगी , घर में चैन होगा तो आराम की नीद आयेगी.किसान - भैया , खेत में हाड़ तोड़ मेहनत करके आराम की नीद ही तो सो रहा था , तब आपने आकर जगा दिया.समाज सेवक की ड्यूटी पूरी हो चुकी थी , जिन्होंने पुरे देश को जागृत करने का प्रोजेक्ट ले रखा था.
तो साहब किस्से तो बहुत है , हा हमें किसे जगाने और किसे सुनाने की jarurat है यह कौन तय करेगा??????????????????

Sunday, December 6, 2009

सच खांटी सच

मौन है मीठा , मुखर तीखा
मगर बेचैन है जीभ
क्या करू ! कुछ तीखा कहने का मन है ,
कह दू कुछ - जो है तीखा पर खांटी सच
आग लगे ऐसा कटु
क्या कहू ? कह दूँ या न कहू.....................
इसलिए "अनुराग आग्नेय " कहते हैं
मेरे मुह पर मत बोलो की स्लिप लगा दो
वरना मै बोल पडूंगा
परतें डर परतें खोल पडूँगा
बेनकाब कर दूंगा
नंगा नाच नचा दूंगा
सारी औकात बता दूंगा
बांबी में हाथ अगर डाला तो ऐसा डंक लगेगा
दंश न उसका भूल सकोगे जीवन भर
सच यह है की कल रात एक धर्म के ठेकेदार ने धर्मस्थल पर :
तीन साल की बच्ची के साथ अपनी हवस मिटाई
एक माँ ने चार दाने चावल के लिए अपने दूधमुहे लाल को बेच दिया
और सच....................... मत सुनो .................. क्या करोगे !
तुम भी तो ओह! कहकर पृष्ठ पलट दोगे.....

Monday, November 30, 2009

Aparna_kutubnagar: samwedanheen

Aparna_kutubnagar: samwedanheen

samwedanheen

एक औरत जब खड़ी होती है सरेबाजार नंगी
तो लोगों के मन में संवेदना नही ! वासना जागती है
भले ही वह हो विक्षिप्त ,
उसका तन , मन या दिमाग न देता हो उसका साथ
या गरीबी के कारन मुहैया न हो उसे पूरे kapade

Saturday, November 21, 2009

दुम हिलाता कानून

कभी गर थाने जाना
न्याय का जनाजा अपने सर लाना
कल जो था मुजरिम
आज वही खुले आम घूमता है
और न्याय खोजने वाला दर दर भटकता है ।
"पैसा फेको तमाशा देखो " का बोर्ड कर दो चस्पा हर पुलिस स्टेशन के ऊपर
पैसा मदारी है और वर्दी में छुपा है जमूरा
पैसा जो दिखाएगा , जमूरा वही देखेगा
इमानदारी हवालात में बंद है और पैसे के हाथ में है चाभी
दोस्तों !
न्याय मागोगे अन्याय मिलेगा
पैसा फेकोगे कानून दुम हिलाएगा .

Sunday, November 15, 2009

kahne ko to kuchh bhi kah du
par duniya se darti hu
aaj ka man kal badal gaya to
apne man se darti hu..............

Wednesday, October 28, 2009

परदेश

लक्खू की माँ कहती है , बेटा परदेश मत जा
तेरे पैदा होने के पहले गए थे तेरे बापू
आज तक नही लौटे ,
मगरे की बहन गई थी ब्याह कर शहर
कहते है बैठा दिया उसके पति ने उसको कोठे पर
मन्नू का भाई गया था एक बार
लौटा लेकिन वैसा नही जैसा गया था
शरीर , मन , आत्मा सब कुछ बेच आया
और ले आया ऐसा रोग जिसका कोई इलाज नही ,
बेटा ! यर शहर छीन लेते है हमसे हमारी पहचान
हमारी आवाज , हमारी इज्जत , हमारा विश्वास
और बदले में देते है हमें भूख की मज़बूरी में
हमारी आधे से भी कम कीमत ,
खुला आसमान , बूटो की मार , झोली भर भर गालियाँ और .....................
वह सब कुछ जो हम किसी को देने की कल्पना भी नही कर सकते...

Thursday, October 15, 2009

Aparna_kutubnagar

Aparna_kutubnagar

छोटा सा अनुरोध

जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कंही रह न जाए ......................
इस दीप पर्व पर आप सब से अनुरोध है कि घर में उजाला करने के साथ साथ अपने दिलों को भी रोशन करें और आने आस पास बिखरे दुखों को मुस्कानों में बदलने कि कोशिश जरूर करे ।
जब अपने ही दूर हो जायें तो क्या होली क्या दिवाली
याद उन्हें भी आयी मेरी , मेरी भी आँखे भर आयी ,
याद आ रही है वो जगमग दीपो भरी रंगोली मेरी
बच्चो के संग खेलखेल में घर चौबारे खूब सजाये
दादा के संग हर चौखट पर दिए रखाए
अब भी आती है दिवाली
लेकिन नही खुशी है वैसी
सब कुछ करती हू वैसा ही
फिर भी नही खुशी होती है
हर पग पर यादों की टोली
अपनों की बाते ले आए
आब त्योहारों के रंग फीके है
ये क्या हुआ समय ने हम से
क्यो अपनों को दूर किया है
काश समय ही फिर कुछ करके
अपनों से हमको मिलवाए
और त्योहारों को ले आरे
फिर हर दिन होली , रात दिवाली
खुशियाँ होंगी रंग रंगीली
यही है आशा , यही उम्मीद
समय एक बार फिर आएगा
हमें हमारे दिन lautayega .

Monday, September 21, 2009

देश का हाल

एक दिन एक गाँव में एक आदमी ने अपने परिचय में कहा " मै इस गाँव का मालिक ......... पंचायत सेवक हू। वैसे यंहा का सारा कुछ मै ही देखता हुगाँव कस लोगों को कुछ नही मालूम होता है। ये तो गरीबी रेखा में नाम होते हुए भी इंदिरा आवास लेने नही आते। ये क्या जाने सरकार के काम। इसीलिए तो हमारे देश का यह हाल है। "

दोस्तों

देश का यह हाल सरकारी लोगों के इस नजरिये के कारन है या गाँव के गरीब लोगों के कारन। आप के सुझाव आमंत्रित है.

Tuesday, September 1, 2009

दोस्त और दुश्मन

दोस्त और दुश्मन में अन्तर मत कर
क्या पता आज का दोस्त कल दुश्मन बन जाय
और दुश्मन दोस्ती का हाथ बढाये
बस तैयार रहो आज और कल से निपटने का
क्योंकि यह सब समय का खेळ है
और हम समय के हाथ की kathputaliyan

Gulab

1
प्रिय क्या तुम भेज सकते हो एक गुलाब
और वादा कर सकते हो मुझसे
इसके कभी भी न मुरझाने का

तुमने कुछ लाल गुलाब भेजे थे
मेरी किताबो में अभी भी जिन्दा है उनकी पंखुडियां
और हाँ........... उनकी खुशबू bhi
पर तुम्हारे संदेश kyon मुरझा गए


कागज की कश्तियों से समंदर पर नही किया जाता
झूठे ख्वाबों से गुलशन आबाद नही किया जाता
प्यार तो एक धर्म है , पूजा है , विश्वास है
सिर्फ गुलाबों से इस पर एतबार नही किया जाता

Monday, August 31, 2009

भूख और रोटी

सब कहते है रोटियां आटे से बनती है
मै कहती हू रोटियां आटे से नही इच्छा , सपने और मेहनत से बनती है
और भूख ही जन्म देती है आटे को , रोटी को और आग को .
भूख ही है वह इच्छा
जो बना देती है घर , रिश्ते , दोस्त , दुश्मन और बाजार
जंहा , रोटी और भूख दोनी ही बिकती है
बस कीमत अलग अलग है और रोटी के आकर भी
रोटी कभी जिन्दा होती है , कभी मुर्दा
कभी गीली कभी सुखी
कभी जवान कभी बूढी
बस बिकती है
और अपने अपने खरीददारों में अपनी किस्मत ढूढती है
दोस्तों , कभी भूख लगे तो सिर्फ रोटी को मत खोजना
खोजना उस बाजार को जंहा हर रात किस्मत बदलती है
हो सकता है ,
तुम्हारी भूख किसी रोटी कि किस्मत बदल दे .

Saturday, July 18, 2009

मंहगाई

दाल मंहगी है
आटा मंहगा है
सब्जी मंहगी है
तेल मंहगा है
इस देश में सब कुछ मंहगा है
बस सस्ता है तो इन्सान
और इन्सान का खून.

Friday, July 3, 2009

सच

वे कहते हैं की तुम अच्छी हो

बहुत अच्छी हो

तुम्हारे होने से जिंदगी जिंदगी लगती है

वे कहते है

कि तुमने मुझे जीने की राह दिखाई

वे बहुत कुछ अच्छा , मीठा , प्यारा , सुनहरा, दीवानगी से भरा

कहते है , कहते रहते है

लेकिन उनकी ऑंखें कुछ नही कहती!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

ऑंखें अबोली भाषा बोलती है

ऑंखें सच कहती है

वे कहते हैं मेरी ऑंखें पढो

तुम्हे सच दिखेगा

मुझे सच दीखता है

पर ऐसा सच जो उन्हें झूठा बनाता है

शाम

एक खुबसूरत शाम
अपनों के नाम
जिसमे है चाँद , फूल,खुशबू, बारिश और वे एहसास
जो देते है खुशियाँ , मोहब्बते और उम्मीद
कि रात आने वाली है
जो अपने जाने के पहले एक सुबह जरुर देकर जायेगी
आओ इस शाम का स्वागत करे

Wednesday, June 3, 2009

हाथ हिलाते हैं बच्चे

तुम कहते हो

तुम कहते हो
क्यों नही मिलती हूँ मै मुस्कुराती हुई तुम्हारे घर पहुँचने पर,
क्यों नही गुनगुनाती रहती हूँ मै
घर के कोने कोने में संगीत बन कर ,
क्यों नही सज -धज कर खिलखिलाती रहती हूँ
अपनी हमउम्र नौयौवनाओ की भांति ,
क्यों नही दौड़ जाती हू घर के बहार
हर फेरी वाले की आवाज पर
क्योँ नही बन जाती हूँ वैसी ; जैसी
तुम्हारे घर की पडोसन
उत्साह में बार बार झांकती है तुम्हारा आंगन
??????????????????????????????
पूछो मत मुझसे कोई सवाल
आओ देखो .....
रसोई के दिन पर दिन खाली होते दिब्बे
मेरी डायरी का रोज कम होता एक एक पृष्ठ
और रात के तीसरे पहर में
मेरी आँखों से बूँद बूँद रिसता तुम्हारा घर .

अनुराग आग्नेय के लिए

ये बैठे है इस इंतजार में
की एक दिन ख़त आएगा जरूर उनका इनके नाम
जिसमे सुर्ख रंग से लिखा होगा उन्होंने इनका नाम और मूद ली होंगी शर्म से अपनी ऑंखें
और वे भी बैठे हैं इस इंतजार में
की एक दिन जरूर आएगी इनकी पाती
जिसमे लिखा होगा इन्होने अपने दिल का हाल
एक मीठी शुरुआत , सपनो की बात
जीवन के रंग, अपनों का संग
दोनों ही बैठे रहे इंतजार में
न ख़त आया न पति
हाँ एमर जरुर बीत गई
बस जिन्दा रहा तो इंतजार और उम्मीद
और उम्मीद है तो जीवन है , फूल है , रंग है , खुशियाँ है ..........

Tuesday, May 19, 2009

जीवन दर्शन

मै नहीं जानती की सवाल क्या है और जवाब क्या

मै तो बस यह जानती हूं ....

की जिंदगी एक सवाल है और मौत जवाब

My First Poetry

समय इतना कठिन है फिर भी
मेरे संकल्प मेरे पास है
मई असफल हो रही हूँ मगर
सफलता का मुझे विश्वास है
प्रगति के मार्ग को न रोक पाई है बाधा
उस अनछुए आकाश को छू लुंगी
इसका मुझे विश्वास है.