Thursday, October 15, 2009

जब अपने ही दूर हो जायें तो क्या होली क्या दिवाली
याद उन्हें भी आयी मेरी , मेरी भी आँखे भर आयी ,
याद आ रही है वो जगमग दीपो भरी रंगोली मेरी
बच्चो के संग खेलखेल में घर चौबारे खूब सजाये
दादा के संग हर चौखट पर दिए रखाए
अब भी आती है दिवाली
लेकिन नही खुशी है वैसी
सब कुछ करती हू वैसा ही
फिर भी नही खुशी होती है
हर पग पर यादों की टोली
अपनों की बाते ले आए
आब त्योहारों के रंग फीके है
ये क्या हुआ समय ने हम से
क्यो अपनों को दूर किया है
काश समय ही फिर कुछ करके
अपनों से हमको मिलवाए
और त्योहारों को ले आरे
फिर हर दिन होली , रात दिवाली
खुशियाँ होंगी रंग रंगीली
यही है आशा , यही उम्मीद
समय एक बार फिर आएगा
हमें हमारे दिन lautayega .

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