Wednesday, June 3, 2009

हाथ हिलाते हैं बच्चे

तुम कहते हो

तुम कहते हो
क्यों नही मिलती हूँ मै मुस्कुराती हुई तुम्हारे घर पहुँचने पर,
क्यों नही गुनगुनाती रहती हूँ मै
घर के कोने कोने में संगीत बन कर ,
क्यों नही सज -धज कर खिलखिलाती रहती हूँ
अपनी हमउम्र नौयौवनाओ की भांति ,
क्यों नही दौड़ जाती हू घर के बहार
हर फेरी वाले की आवाज पर
क्योँ नही बन जाती हूँ वैसी ; जैसी
तुम्हारे घर की पडोसन
उत्साह में बार बार झांकती है तुम्हारा आंगन
??????????????????????????????
पूछो मत मुझसे कोई सवाल
आओ देखो .....
रसोई के दिन पर दिन खाली होते दिब्बे
मेरी डायरी का रोज कम होता एक एक पृष्ठ
और रात के तीसरे पहर में
मेरी आँखों से बूँद बूँद रिसता तुम्हारा घर .

अनुराग आग्नेय के लिए

ये बैठे है इस इंतजार में
की एक दिन ख़त आएगा जरूर उनका इनके नाम
जिसमे सुर्ख रंग से लिखा होगा उन्होंने इनका नाम और मूद ली होंगी शर्म से अपनी ऑंखें
और वे भी बैठे हैं इस इंतजार में
की एक दिन जरूर आएगी इनकी पाती
जिसमे लिखा होगा इन्होने अपने दिल का हाल
एक मीठी शुरुआत , सपनो की बात
जीवन के रंग, अपनों का संग
दोनों ही बैठे रहे इंतजार में
न ख़त आया न पति
हाँ एमर जरुर बीत गई
बस जिन्दा रहा तो इंतजार और उम्मीद
और उम्मीद है तो जीवन है , फूल है , रंग है , खुशियाँ है ..........