Wednesday, February 2, 2011

कल हो न हो .........................

कल हो न हो .........................
ख्वाहिशे इतनी की चाँद को कर लूँ अपनी मुट्ठी  में
सितारों की चादर तान लूँ अपने आसपास
तजुर्बा है की ख्वाहिशों के पर निकलने से कितने ही असमान छोटे पड़ जाते हैं
जानती हूँ " कल किसने देखा "
आज ही दामन को फैलाये बैठी हूँ
जैसे ही कोई कली खिले , एक भी किरण मुस्कुराये
तो हमारी झोली में ही आये .

Tuesday, February 1, 2011

एक दोस्त के लिए

एक दोस्त के लिए
आज तुम्हारी बहुत याद आई
संवाद का टूटना उतना बुरा नहीं होता
वास्तव में कुछ बुरा है तो है रिश्तों का विखंडन
अकेलापन न तो तुम्हारे पास है न मेरे पास
क्या कहीं  ऐसा नहीं लगता की
कुछ कोहरा सा छk गया है हमारे आस पास
जो हमारी आँखों को कर रहा है अँधा
क्या हम अपने अपने सन्नाटे में डूब नहीं गए
मै मानती हूं  जिंदगी किसी एक के पीछे ख़त्म नहीं होती
पर क्या एक एक के ख़त्म होने से जिंदगी सूनी नहीं हो जाती  
मानती हूं  लोगों की कमी नहीं है तुम्हारे और हमारे पास
पर क्या टटोला है कभी ,
उनमे से कितने है तुम्हारे अपने
आस पास बिखरी खिलखिलाहटों में ,
कितनी  खुशी तुम्हारे हिस्से की है 
सुनना भले ही मत किसी की
लेकिन एक बार सच्चे मन से अपने भीतर जरूर झांकना
क्या कोई कोना ख़ाली नहीं लग रहा  !.........................