कल हो न हो .........................
ख्वाहिशे इतनी की चाँद को कर लूँ अपनी मुट्ठी में
सितारों की चादर तान लूँ अपने आसपास
तजुर्बा है की ख्वाहिशों के पर निकलने से कितने ही असमान छोटे पड़ जाते हैं
जानती हूँ " कल किसने देखा "
आज ही दामन को फैलाये बैठी हूँ
जैसे ही कोई कली खिले , एक भी किरण मुस्कुराये
तो हमारी झोली में ही आये .
ख्वाहिशे इतनी की चाँद को कर लूँ अपनी मुट्ठी में
सितारों की चादर तान लूँ अपने आसपास
तजुर्बा है की ख्वाहिशों के पर निकलने से कितने ही असमान छोटे पड़ जाते हैं
जानती हूँ " कल किसने देखा "
आज ही दामन को फैलाये बैठी हूँ
जैसे ही कोई कली खिले , एक भी किरण मुस्कुराये
तो हमारी झोली में ही आये .