Wednesday, June 30, 2010

स्वाभिमान या रोटी

वो कहते हैं न की झुककर तो कविता भी नहीं उठानी चाहिए.  लेकिन यह देश ऐसा है दोस्तों की हर इमानदार , मेहनतकश को भ्रष्ट , बेईमान साहब के  सामने झुकना पड़ता है भले ही वह कितना भी   सही क्यों न हो .

पाठकों आप सब से यह सवाल है -  स्वाभिमान जरुरी है या रोटी.
कृपया जवाब जरुर दीजिये .

7 comments:

Amitraghat said...

"निःसन्देह रोटी...."

Anonymous said...

"हर इमानदार, मेहनतकश को भ्रष्ट, बेईमान साहब के सामने झुकना पड़ता है भले ही वह कितना भी सही क्यों न हो."


यही सीखा है और "स्वाभिमान जरुरी है" अभी तक तो यही माना है लेकिन आभास होने लगा है कि "रोटी" जरुरी है इसलिए हो सकता है भविष्य में स्वाभिमान को नजरअंदाज करना पड़े.

Udan Tashtari said...

क्या कहा जाये..एक समझौता सा हो जाता है कि जब जिन्दा ही नहीं बचेंगे तो फिर कैसा स्वाभिमान!! शायद इसी वजह से.....

दिगम्बर नासवा said...

स्वाभिमान की रक्षा के लिए पेट में रोटी होना ज़रूरी है......

अरुणेश मिश्र said...

अपर्णा ! अच्छा सवाल किया ।
स्वाभिमान की रोटी ।

Travel Trade Service said...

i go for swbheman !!!!

Vinod Kumar Pathak said...

''जो मर जाता है, वह कुछ नहीं सोचता, कुछ नहीं बोलता
जो कुछ नहीं सोचता, कुछ नहीं बोलता, वह मर जाता है''

आपका ब्लॉग देखा अच्छा लगा.आप सोचती भी हो और लिखती भी हो, यह निश्चय ही जिंदा रहने का एहसास है
आप निरंतर लिखें, अनंत शुभकामनाएं

मेरा जहाँ तक अनुभव है कि रोटी के लिए स्वाभिमान दाव पर लगाने की नौबत नहीं आती. हाँ, रोटी में घी या मक्खन खाने की आदत हो तो अलग बात है ....
- विनोद कुमार पाठक