Friday, December 3, 2010

सिनाख्त

झाड़ी में पड़ी छिन्न- भिन्न लाश
की पहचान करना मुश्किल था.
कौन था , किस धर्म का था
किस गाँव या किस देश का था ;
हाँ उसकी जेब से मिले सूखे सुर्ख गुलाब से सिनाख्त हो सकी
कि वह एक जिंदादिल इन्सान था
तमाम बंदिशों और परम्पराओं के बावजूद...............
वह प्रेम में था ...................................................

2 comments:

अमिताभ मीत said...

बहुत ख़ूब !

vandana gupta said...

उफ़!मार्मिक चित्रण्……………शायद आज प्रेम का यही हश्र रह गया है।