Sunday, March 13, 2011

होली में न आने का न्योता

आना नहीं आना नहीं आना नहीं भाई
मजबूरी है पसरी घर में आना नहीं भाई
थाली में अब खाना नहीं है आना नहीं भाई
पीने को अब पानी नहीं है घर न आना  भाई
जेब  हमारी रुखी सूखी हाथ नहीं है धेली
मंहगाई  की आफत आई कैसे मनाएं होली
सुख के रंग हो गए फीके, दुख के रंग चपल हैं
ख़ुशी भरी आँखों में भाई, दुख के अश्रु भरे है.
गुझिया में अब खोया नहीं, होगी केवल हवा
चीनी की है किल्लत घर में, नहीं बनेगा हलवा.
चाय बन रही काली काली, दूध  हो गया मंहगा  
बासी कपड़ों से कम चलाओ नया न मागो लंहगा
रंग लगाने की बारी में टीका सिर्फ लगाओ
सिर्फ गले मिलकर ही भैया , होली में कम चलाओ.